Thursday, October 10, 2013

आखिर क्या है तंदूर कांड ?




18 साल बाद आज एक बार फिर तंदूर धधक उठा. 18 साल बाद आज एक फैसले ने एक बार फिर से उस तंदूर कांड को जिंदा कर दिया जिस तंदूर से निकली तपिश ने तब पूरे देश को तपा दिया था. पहली बार 18 साल पहले लोगों को पता चला था कि कभी किसी इंसान को तंदूर में भी भुना जा सकता है. जी हां, 18 साल पहले हुए उसी चर्चित तंदूर कांड के मुख्य आरोपी सुशील शर्मा की फांसी की सज़ा को सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उम्र कैद में बदल दिया।. पर सज़ा से पहले आइए देखते हैं कि आखिर क्या है तंदूर कांड?
2 जुलाई 1995 
गोल मार्केट, नई दिल्ली
सरकारी फ्लैट नंबर 8/2ए
रात के साढ़े आठ बजे


अचानक इस सरकारी क्वार्टर के फ्लैट नंबर 8/2ए से गोलियां चलने की आवाज आती है. पड़ोसियों को लगा कि शायद किसी ने पटाखे छोड़े हैं. लिहाज़ा कुछ देर बाद हर तरफ खामोशी छा जाती है.

थोड़ा वक्त बीतता है. इसके बाद अचानक फ्लैट का दरवाजा खुलता है. एक साया पॉलीथीन में रखी कोई वजनी चीज घसीटता हुआ फ्लैट से बाहर निकलता है. बाहर एक कार खड़ी थी. साया पॉलीथिन को उठा कर कार की डिकी में रखता है और फिर डिकी बंद कर ड्राइविंग सीट पर बैठते ही कार को तेजी से भगा ले जाता है.

रात करीब साढ़े नौ बजे
आईटीओ पुल

अंधेरा गहराता जा रहा था और सड़क पर धीरे-धीरे ट्रैफिक की भीड़ भी कम होती जा रही थी. कार चलाने वाला आईटीओ पुल पर पहुंचने के बाद तेजी से इधऱ-उधर देखता है. उसे शायद किसी खास मौके की तलाश थी. पर मौका शायद मिल नहीं रहा था। लिहाज़ा पुल के कुछ चक्कर काटने के बाद वो पुल के बीचो-बीच किनारे अपनी कार रोक देता है. कार का इंजिन बंद करता है और नीचे उतरता है.

दरअसल उसका इरादा कार की डिकी में रखी पॉलीथिन को पुल के नीचे यमुना में फेंकने का था. लेकिन पुल पर अब भी ट्रैपिक था. लोग लगातार आ-जा रहे थे. लिहाज़ा उसे मौका नहीं मिलता कि वो पॉलीथिन को यमुना में फेंक सके. उसे डर था कि कहीं किसी ने उसे पॉलीथिन फेंकते देख लिया तो उसकी पोल खोल जाएगी.

लिहाज़ा डर के मारे वो वापस कार में बैठता है और कुछ सोचने लगता है. तभी अचानक उसके दिमाग में बिजली की तरह एक और तरकीब कौंधती है. वो फौरन कार का रुख मोड़ देता है. अब कार वापस क्नॉट प्लेस की तरफ भागती है. क्नॉट प्लेस पहुंचते ही इस बार कार अशोक यात्री निवास के अंदर बगिया रेस्तरां के पास जाकर रुकती है.

रात करीब साढ़े दस बजे
बगिया रेस्तरां
अशोका यात्री निवास
क्नॉट प्लेस

रेस्तरां में उस वक्त भी कुछ लोग बैठे खाना खा रहे थे. कार रेस्तरां में पार्क करने के बाद कार से वही शख्स उतरता है और रेस्तरां के मैनेजर केशव के पास पहुंचता है. दरअसल कार चलाने वाला कोई और नहीं बल्कि दिल्ली यूथ कांग्रेस का प्रेसिडेंट सुशील शर्मा था और ये रेस्तरां तब सुशील शर्मा का ही था. कार से उतरने के बाद घबराया सुशील शर्मा केशव से फौरन रेस्तरां बंद करने को कहता है. इसके बाद ग्राहकों के वहां से निकलते ही रेस्तरां की बत्ती भी बुझा दी जाती है. पर रेस्तरां का तंदूर अब भी जल रहा था.

क्नॉट प्लेस के इस इलाके में तंदूर का धधकना या तंदूर का जलना रोजमर्रा की बात थी. लोग देर रात यहां खाना खाने आते थे. मगर उस रात तंदूर में जो होने जा रहा था वैसा शायद ही उससे पहले दुनिया के किसी तंदूर में हुआ था. तंदूर जली पर ऐसी जली कि हरेक को जला गई. 

रात करीब साढ़े ग्यारह बजे
बगिया रेस्तरां
अशोका यात्री निवास
नई दिल्ली

सुशील शर्मा के कहने पर रेस्तरां पूरी तरह खाली हो चुका था. सुशील शर्मा ने केशव से कह कर रेस्तरां के बाकी कर्मचारियों को भी वहां से भेज दिया. अब अंदर सिर्फ रेस्तरां का मैनेजर केशव और सुशील शर्मा थे. इसके बाद सुशील कार की डिकी से पॉलीथिन बाहर निकालता है. पॉलीथिन में एक लाश थी. एक महिला की लाश.

सुशील लाश के बारे में केशव को झूठी-सच्ची कहानी सुनाता है पर ये नहीं बताता कि लाश किसकी है. इसके बाद केशव के साथ मिल कर वो रेस्तरां के चाकू से लाश के टुकड़े करता है. फिर हर टुकड़े को उसी रेस्तरां के जलते तंदूर में डालता जाता है. दरअसल तंदूर की गहराई और तंदूर का मुंह दोनों छोटा था. पूरी लाश एक साथ तंदूर में नहीं जा सकती थी. इसीलिए दोनों लाश के टुकड़े कर तंदूर में डाल रहे थे.

अब टुकड़ों में बंटी पूरी लाश तंदूर के अंदर थी. पर तंदूर ठीक से जल नहीं रहा था. तब आग की लौ तेज करने के लिए सुशील ने केशव से मक्खन लाने को कहा. मक्खन रेस्तरां में पहले से था. अब दोनों मिल कर तंदूर में मक्खन डालने लगते हैं. तरीका काम कर जाता है. आग की लौ तेज होती जाती है. पर यहीं एक गड़बड़ भी हो जाती है.

दरअसल तंदूर में डाल कर इंसानी लाश भूनने का काम अभी जारी ही था कि मक्खन की वजह से तंदूर से उठती आग की तेज लपटें और धुएं के गुबार पर रेस्तरां के बाहर फुटपाथ पर सो रही सब्जी बेचने वाली एक महिला अनारो की नजर पड़ जाती है. अनारो को लगता कि शायद रेस्तरां में आग लग गई है. लिहाज़ा अनारो चीख कर शोर मचाने लगती है. अनारो की चीख पास में ही गश्त कर रहे दिल्ली पुलिस के सिपाही अब्दुल नजीर गुंजू के कानों तक पड़ती है. गुंजू अनारो के पास आता है और फिर रेस्तरां से उठती आग की लपटों को देख रस्तरां की तरफ दौड़ पड़ता है और इस तरह सामने आती है वहशीपन की वो रौंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी जो सालों तक सुनी और सुनाई जाती रहीं.

रौंगटे खड़ी देने वाली इस वारदात के अगले रोज अखबारों के जरिए ये खबर दिल्ली यूथ कांग्रेस के एक नेता मतलूब करीम को मिलती है. तब मतलूब करीम सामने आकर पहली बार ये खुलासा करता है कि तंदूर में जिस महिला को भूना गया उसका नाम नैना साहनी है. सुशील शर्मा की बीवी नैना साहनी. वो मतलूब करीम ही था जिसने पहली बार शक जताया कि नैना साहनी का कत्ल किसी और ने नहीं बल्कि खुद उसके पति सुशील शर्मा ने किया है. हादसे के बाद से ही सुशील शर्मा भी गायब हो चुका था. लिहाज़ा पुलिस का शक यकीन में बदलने लगा. पर सवाल ये था कि आखिर सुशील शर्मा ने अपनी ही बीवी का कत्ल क्यों किया? और कत्ल किया तो क्या. इस वहशीपन तरीके से उसकी लाश को मक्खन डाल-डाल कर तंदूर में क्यों जलाया? ज़ाहिर है इसका जवाब सुशील शर्मा के ही पास था. पर वो तब तक दिल्ली छोड़ चुका था.

जिस नैना से उसने लव मैरिज की थी. वो उसी नैना के टुकड़े कर तंदूर में झोंक चुका था. यूथ कांग्रेस के नेता से तंदूर कांड का मुजरिम बनने की सुशील शर्मा की कहानी जितनी भयानक है, उतनी ही चौंकानेवाली.

जिस तंदूर कांड ने एक ज़माने में पूरे हिंदुस्तान को चौंका दिया था, आख़िरकार उसी तंदूर कांड का मुजरिम फांसी के फंदे तक पहुंच कर भी फांसी से दूर रह गया. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुशील शर्मा की सज़ा फांसी से बदल कर उम्र क़ैद में तब्दील कर दी. आख़िर क्या रही इस फ़ैसले के पीछे की वजह?

देश के सबसे ख़ौफ़नाक और चौंकानेवाले मर्डर केस का ये मुल्ज़िम पिछले 10 सालों से अपने सिर पर मौत की तलवार लिए घूम रहा था. क्योंकि इतने ही दिन पहले 7 नवंबर 2003 को ही लोअर कोर्ट ने उसकी करतूत को रेयरेस्ट ऑफ़ रेयर के दायरे में रखते हुए उसके लिए सज़ा ए मौत का ऐलान किया था.

लेकिन अब 10 साल बाद वक़्त का पहिया ऐसा घूमा कि उसके सिर पर लटक रही मौत की तलवार अचानक से हट गई और देश की सबसे बड़ी अदालत ने तंदूर कांड के इस गुनहगार सुशील शर्मा की फांसी की सज़ा को बदल कर उसे उम्र क़ैद की सज़ा में तब्दील कर दिया.

दरअसल, 18 साल से जेल में बंद सुशील शर्मा ने अपनी फांसी की सज़ा को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दाखिल की थी. जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नैना साहनी हत्याकांड का गुनहगार सुशील शर्मा कोई पेशेवर मुजरिम नहीं है और ना ही उसका कोई पुराना आपराधिक रिकार्ड है. 18 साल से कैद सुशील शर्मा का चरित्र जेल में भी ठीक रहा है. इसलिए उसकी फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला जाता है. लेकिन कुछ नियम और शर्तों के साथ वो अपनी आखिरी सांस तक जेल में ही रहेगा.








Source-aajtak .intoday .in



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